बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
अध्याय - 4
भारत के परम्परागत मुद्रित एवं चित्रित वस्त्र
(Traditional Printed and Painted Textiles of India)
प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर -
भारत में कपड़ा छपाई का पारंपरिक दृष्टिकोण
भारत देश विविधताओं का देश है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार की मुद्रण तकनीकें पायी जाती हैं। हमारी भारतीय परम्परा चित्रों से समृद्ध है और हम इसे अजंता के भित्त चित्रों और लघु चित्रों में देख सकते हैं। प्राचीनकाल में कपास पर बुनाई और रंगाई की कला अच्छी तरह से विकसित हो चुकी थी परन्तु बाद में रेशम पर इसका विकास हुआ। पांचवीं शताब्दी में भारत और ज्यामितीय डिजाइन लोकप्रिय थे और हमें इसे भारत और मिस्र के मध्य व्यापार से पा सकते हैं। भारत ऐसा प्रथम देश है जिसने पहली बार तीव्र प्राकृतिक रंगों से रंगाई और छपाई की कला की शुरुआत की। विदेशी यात्रियों के लिए नील की रंगाई एक रहस्यमयी प्रक्रिया थी क्योंकि कि जब कपड़े को नील में डुबोया जाता है तो कोई भी रंग उसमें नहीं 'दिखाई देता है जब कपड़े को सुखाया जाता है तो उसमें रंग दिखाई देता है। छपाई का प्रमुख उद्देश्य कपड़े को अलंकृत करना है। प्रिंटिंग तकनीकी के कई प्रकार हैं उसमें से प्रमुख है स्क्रीन प्रिंटिंग। स्क्रीन प्रिंटिंग को पहले सिल्क प्रिंटिंग के रूप में जाना जाता था। उसमें सिल्क गेज को छपायी के लिए स्क्रीन के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। यही कारण है कि इसे सिल्क प्रिंटिंग नाम दिया गया। सिल्क गेज पर डिजाइन को उकेरा गया, तत्पश्चात उसमें रंग फैलाया गया। स्क्रीन प्रिंटिंग का प्रमुख लाभ यह है कि यह लागत प्रभावी है और इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर संभव है। डाई उच्च बनाने की क्रिया और इंकजेट प्रिंटिंग की तुलना में स्क्रीन प्रिंटिंग अधिक लाभदायक है। इसका प्रयोग आमतौर पर बैनर और झंडे के लिए करते हैं। स्क्रीन प्रिंटिंग के जन्मदाता गाय मैंक राय हैं।
मुद्रण समूह - इसके अन्तर्गत हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग आती है जोकि एक प्रतिष्ठित कला है और इसे पीढ़ी दर पीढ़ी सौंप दिया जाता है। गुजरात, अहमदाबाद इस प्रकार के मुद्रित वस्त्रों का केन्द्र है। कपास पर प्रिंट के लिए दक्षिण में कई केन्द्र प्रसिद्ध हैं। सर्पप्रथम छपाई और रंगाई का विकास राजस्थान में हुआ। गुजरात की ब्लाक प्रिंटिंग आम थी। रंग बनाने की प्रक्रिया अत्यधिक सरल थी। एक आश्चर्यजनक बात है कि एक ही रूपांकन को विभिन्न रूपों में इस्तेमाल किया जा सकता है। मध्य प्रदेश की छपायी भी एक अलग शैली है जो यहाँ की संस्कृति को दर्शाती है।
छपायी के प्रमुख केन्द्र भारत में छपायी के प्रमुख केन्द्र हैं . गुजरात, बंगलौर, तामिलनाडु, पश्चित बंगाल, छत्तीसगढ़।
पारंपरिक मुद्रण (छपाई) शैली प्रत्येक क्षेत्र में अलग अलग शैली और मुद्रण की विधियाँ होती हैं, जिससे उस क्षेत्र की पहचान होती है। ये मुद्रण शैलियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) मुद्रण की सीधी शैली इसमें मुद्रण किसी भी विधि द्वारा पेस्टल या सफेद रंग की पृष्ठभूमि के साथ किया जाता है।
(2) मुद्रण की निर्वहन शैली है। इसमें रंगे हुए पदार्थ से रंग हटा कर प्रिंट बनाया जाता है। रंग हटाकर जब और रंग द्वारा प्रिंट बनाया जाता है, तो यह शैली रंग निर्वहन शैली कहलाती है।
(3) मुद्रण की विरोधी शैली इसमें मुद्रण के लिए रंग प्रतिरोधी सामग्री का उपयोग करते हैं। सर्वप्रथम रंग प्रतिरोधी सामग्री को कपड़े में लगाते हैं तत्पश्चात कपड़ों को रंगते हैं, फिर रंग प्रतिरोधी सामग्री को हटा देते हैं फिर जो सामग्री रंगी नहीं होती है उसे अलग-अलग रंगों से भर दिया जाता है। मिट्टी और मोम का उपयोग रंग प्रतिरोधी सामग्री के रूप में किया जाता है।
जिस मुद्रण शैली में मिट्टी का प्रयोग करते हैं वह डब्बू शैली मोम का प्रयोग करने वाली शैली को वाटिका शैली कहते हैं। चित्रों में पेन, ब्रश या ब्लाक के साथ कपड़े पर तरल मोम लगाते हैं। कुछ विशिष्ट शैलियाँ जो मुद्रण की हैं वे निम्न हैं-
(4) ब्लाक प्रिंटिंग - यह तकनीकी मूल रूप से चीन द्वारा विकसित हुई थी। सर्वप्रथम मूल लकड़ी के ब्लाक को विकसित किया जाता है तत्पश्चात स्याही की सहायता से कारीगारों द्वारा डुप्लीकेट तैयार करते हैं।
(5) इंकजेट प्रिंटिंग प्रमुख रूप से इस विधि में स्याही का उपयोग करते हैं जो मूल रूप से डाई तरल पदार्थ होते हैं। प्रिंट अपने अनुसार इच्छित छवि पर स्याही की छोटी बूंदों द्वारा बनाया जाता है।
(6) हाथ से छपायी - यह टाई एण्ड डाई की पारम्परिक तकनीकों में से एक है। इसका उपयोग वस्त्रों के सजावटी मूल्यों के लिए करते हैं।
(7) स्प्रे पेंटिंग इसमें गन का प्रयोग करते हैं। स्क्रीन पर बंदूक से रंग का छिड़काव करते हैं और इलेक्ट्रो-कोटिंग का उपयोग करते हैं।
(8) टाई-एण्ड डाई - इस तकनीकी में रैप और वेट दोनों धागों को बांधना शामिल है। प्रमुखतः इसमें चमकीले रंगों का प्रयोग करते हैं।
(9) कलमकारी यह कार्य 'कलाम' से किया जाता है 'कलाम' का अर्थ है कलम और कारी की अर्थ है काम। इस प्रकार कलम द्वारा किया गया कार्य कलमकारी कहलाता है। यह भारत की बहुत ही प्राचीन कृति है।
( 10 ) वाटिका इसमें कपड़े पर सर्वप्रथम रंग प्रतिरोधी सामग्री लगायी जाती है तत्पश्चात कपड़े को रंगते हैं। रंगाई के पश्चात रंग प्रतिरोधी पदार्थ को हटा देते हैं, अतः कपडा उस स्थान पर अपने असली रंग को प्राप्त कर लेता है।
पारंपरिक मुद्रण के प्राकृतिक रंग मोर्डेट फिक्सिंग एजेंट हैं, वे कपड़ा, सामग्री, और रंगों के मध्य की एक मजबूत कड़ी है। कापर सल्फेट, एल्युमिनियम सल्फेट और फेरस सल्फेट जैसे धात्विक यौगिकों का उपयोग सामान्यतः मोर्जेंट के रूप में किया जाता है। कुछ धातु सामग्रियाँ अंतिम उत्पादों को प्रभावित करती हैं। जैसे, फेरस सल्फेट जो कपड़े पर काला रंग छोड़ देता है जबकि फिटकरी धोने में सुधार करती है और इसे तेज बनाती है।
फिटकरी - इसका प्रयोग प्राचीन काल से किया जा रहा है। यह एक रंगहीन आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला पदार्थ है।
क्रोम - इसका प्रयोग सोडियम डाइक्रोमेट और पोटाश या पोटेशियम बाइक्रोमेट सामान्य क्रोम मार्जेंट है और कपास की रंगाई के लिए प्रयोग किया जाता है।
आयरन - आयरन का उपयोग फेरस सल्फेट के रूप में किया जाता है। यह सबसे आसान रूप है जो लोहा युक्त है। यह कपड़े के अन्तिम रंग को प्रभावित करता है। पहले इसका उपयोग काले और भूरे रंग के संयोजन में किया जाता था परन्तु अब इसका प्रयोग पोस्ट मोर्जेंट के रूप मे किया जाता है।
कापर - कापर सल्फेट जिसे "ब्लूब्रिटियल रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग लम्बे समय से रंगाई के लिये भी किया जाता है। यह जहरीला होता है, इसका इस्तेमाल करते समय सावधानी रखनी होती है।
टैनिक एसिड यह सेल्यूलोज फाइबर के लिये प्रयोग किया जाता है इसका प्रयोग मोडेंट के रूप में करते हैं। जब टैनिक एसिड को फेरस सल्फेट के रूप में प्रयोग करते हैं तब यह नीले या काले रंग का हो जाता है।
टिन टिन के क्रिस्टल, स्टैनस क्लोराइड, टिन के क्यूरेट और टिन के लवणों में टिन उपलब्ध होता है। यह अन्य एजेन्टों के साथ एक संसोधित एजेंट के रूप में प्रयोग किया जाता है और डाई रंगों को उज्ज्वल करता है। उपयोग करते समय विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि इसमें जहर होता है।
पारंपरिक छपाई प्राकृतिक रंगों का प्रयोग पारंपरिक छपायी के लिये करते हैं। प्राकृतिक रंगों का प्रमुख स्रोत पौधे, जानवर और खनिज हैं। सिंथेटिक रंगों की जब खोज नहीं हुयी थी तब डाई करने के लिये इन्हीं रंगों का प्रयोग जाता था। सभी क्षेत्रों में लाल, पीले, नीले, भूरे, नारंगी रंगों का प्रयोग करते हैं।
प्राकृतिक रंगों के स्रोत
लाल रंग - यह मंजिष्ठा (रूबिया कॉर्डिफोलिया) की छाल से प्राप्त होता है।
भूरा कच्छा कत्था (बबूल कथा) से इसके अर्क से एक्रोथ (जुगलन्सरेगिया) से इसकी छाल से बबूल (बबूल अरेबिका) से इसके बीज से प्राप्त किये जाते हैं।
लाल चंदन (एडेनेंथेरा पैवोनिना) की छाल से पीला नारंगी। सरसों की पंखुड़ियों से गेंदा ( टैगल्स इरेक्टा) बनाती है। (लॉसोनिया इनमिसि ) इसकी पत्तियों से मेहदी सुनहरा रंग प्राप्त होता है।
में
पारंपरिक मुद्रण (छपाई) प्रक्रिया समान रूप से रंग को एक ट्रे में फैलाया जाता है तत्पश्चात ब्लाग को रंग में डुबोते हैं, इसके कपड़े पर ब्लाग लगाते हैं। लकड़ी के ब्लाग पर स्ट्रोक दिए जाते है जिससे कि अच्छा प्रभाव हो सके। ब्लाग के बाहरी हिस्से में एक निशान होता है जो कि प्रिंटर के लिये दिशा निर्देश देता है कि कब दोहराना है। जब प्रिंटर से एक अधिक रंग का डिजाइन करना चाहता है, वो वह अपने ब्लाग को दूसरे रंग में डुबो सकता है। प्रिंटर को इस बात का ध्यान रखना होता है कि दोनों रंग कोई अन्य रंग न दे। एक ही रंग का डिजाइन तीव्रता से तैयार करते हैं। कपड़े को प्री और पोस्ट प्रोसेसिंग की आवश्यकता होती है। प्रत्येक रंग को विकसित होने के लिये अलग-अलग समय लगता है। लाल और काले जैसे रंगों के विकसित होने में 7 से 10 दिन का समय लगता है जब रंग विकसित हो जाता है तब एक बार पुनः धोया जाता है।
पारंपरिक मुद्रण का दायरा मुद्रण के अंतिम परिष्करण पर ध्यान देने की आवश्यकता अधिक होती है।
हैंड ब्लाक प्रिंटिंग में बहते पानी की आवश्यकता होती हैं। वैकल्पिक स्रोतों के उपयोग से पर्यावरण और श्रम बचाया जा सकता है। अगर इस कला पर उचित ध्यान दिया जाय तो इससे
बहुत लोगों को रोजगार मिल सकता है। इससे स्थानीय लोक परंपराएँ भी संरक्षित हो सकती हैं। इससे बाजार में अच्छे निर्यात की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
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- प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
- प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
- प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
- प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
- प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
- प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
- प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
- प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
- प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
- प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
- प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
- प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
- प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
- प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
- प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
- प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
- प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
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- प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
- प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
- प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
- प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
- प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
- प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
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- प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।